नई दिल्ली: AIIMS में घंटे भर में होगी बीके वायरस की जांच, खराब होने से बचेगी किडनी
मरीज के शरीर में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद किसी बाहरी अंग को अस्वीकार कर देने या संक्रमण के कारण प्रत्यारोपित अंग के खराब होने की आशंका कुछ समय तक बनी रहती है. किडनी प्रत्यारोपण (Transplant) फेल होने का मुख्य कारण बीके वायरस का संक्रमण है. यह वायरस किडनी में होता है.जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर इसका संक्रमण फैलता है और वायरल लोड बढ़ने लगता हैं।
Subkuz.com के पत्रकारों से बातचित के दौरान एम्स (All India Institute Of Medical Sciences) के डॉक्टरों ने बताया कि इस वायरस के इलाज के लिए अभी तक कोई दवा नहीं बनी है. इम्यूनोसप्रेशन दवा की डोज से ही इस वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है. इस वायरस की आरटीपीसीआर (Reverse Transcription Polymerase Chain Reaction) जांच की जाती है।
एम्स के डॉक्टरों ने कहां कि एम्स ने इस वायरस की जल्दी जांच के लिए एक किफायती नई तकनीक नैनोलैंप (नैनोएलएएमपी/लूप मेडिएटेड आइसोथर्मल एंप्लिफिकेशन) विकसित की है. जिससे घंटे भर में बीके वायरस की जांच की जा सकेगी। यह तकनीक प्रत्यारोपित किडनी को खराब होने व मरीजों की जान बचाने में अहम साबित होगी।
ट्रायल के दौरान 96 प्रतिशत प्रभावी यह तकनीक
बताया है को एम्स के एनाटमी, पैथोलाजी व नेफ्रोलाजी विभाग के डॉक्टरों ने मिलकर इस तकनीक विकसित किया है. इस तकनीक में जांच के लिए खास तरह के प्राइमर और सोने के नैनो कण इस्तेमाल किए गए है. ट्रायल के दौरान यह तकनीक जांच में 96 प्रतिशत तक प्रभावी पाई गई है. साथ ही आरटीपीसीआर जांच की तुलना में यह जांच बहुत सस्ती और उपयोगी हैं।
एक साल में 12 हजार मरीजों का ही किडनी प्रत्यारोपण
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (जर्नल आफ वायरोलाजिकल मेथड्स) में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश में हर वर्ष करीब दो लाख लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में हर वर्ष करीब 12 हजार मरीजों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।
शोध में शामिल एम्स के एनाटमी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण के बाद भी कई मरीजों की किडनी दोबारा खराब हो जाती है. इसका मुख्य कारण बीके वायरस का संक्रमण है. इस वायरस के इलाज के लिए अभी तक कोई दवा नहीं बनी है, जिससे इस वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके चलते उन मरीजों की मौत भी हो जाती हैं।
दोबारा खराब होने से बचेगी किडनी
नई तकनीक नैनोलैंप (नैनोएलएएमपी/लूप मेडिएटेड आइसोथर्मल एंप्लिफिकेशन) से मरीज के ब्लड का सैंपल लेने के बाद एक या दो घंटे के भीतर रिपोर्ट मिल जाती है. समय से वायरस की जांच होने पर वायरस के वास्तविक स्थिति का पता लगाकर मरीज को आवश्यक दवा मिल सकेगी। तथा इससे किडनी दोबारा खराब होने से बच सकेगी।
बताया है कि इस तकनीक जांच से सैंपल का रंग बदल जाता है. इसलिए इस तकनीक की मदद से दसवीं पास प्रशिक्षित व्यक्ति भी यह जांच आसानी से कर सकता है. आने वाले समय में इस तकनीक से कैडेवर डोनर (शरीर दान) में भी बीके वायरस की मौजूदगी की जांच हो सकेगी। इसके लिए अभी शोध चल रहा हैं।