Success Story: चपरासी से अधिकारी तक जिस दफ्तर में थे चपरासी, परीक्षा पास कर उसी में बन गए अधिकारी

Success Story: चपरासी से अधिकारी तक जिस दफ्तर में थे चपरासी, परीक्षा पास कर उसी में बन गए अधिकारी
अंतिम अपडेट: 08-12-2024

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के छोटे से गांव बिटकुली के रहने वाले शैलेंद्र कुमार बांधे की कहानी किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। उन्होंने न केवल अपनी कड़ी मेहनत से सीजीपीएससी परीक्षा पास की, बल्कि चपरासी के पद से शुरुआत करके उसी दफ्तर में अधिकारी बन गए। यह कहानी उन सभी युवाओं के लिए एक संदेश है जो जीवन में सफलता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

शैक्षणिक यात्रा और संघर्ष

शैलेंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में की और इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) से बीटेक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) की डिग्री प्राप्त की। एक प्रतिष्ठित संस्थान से इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के बाद, शैलेंद्र के पास निजी कंपनियों में नौकरी करने का विकल्प था। लेकिन उनका सपना कुछ और था, और वह सरकारी नौकरी की ओर अग्रसर हुए।

"मैंने प्लेसमेंट इंटरव्यू में हिस्सा नहीं लिया, क्योंकि मेरी ख्वाहिश सरकारी नौकरी में थी। मुझे अपनी प्रेरणा एनआईटी रायपुर के एक सीनियर हिमाचल साहू से मिली, जिन्होंने सीजीपीएससी की परीक्षा में पहले स्थान प्राप्त किया था," शैलेंद्र ने कहा।

मेहनत और धैर्य से मिली सफलता

शैलेंद्र ने सीजीपीएससी की परीक्षा की तैयारी पांच साल तक की। पहले प्रयास में वे असफल रहे, लेकिन हार मानने की बजाय उन्होंने अगले प्रयास में अपने को और बेहतर करने की कोशिश की। उन्होंने मुख्य परीक्षा, प्रारंभिक परीक्षा और फिर साक्षात्कार में भी अपनी पूरी मेहनत लगाई। लेकिन सफलता उन्हें अंततः पांचवे प्रयास में मिली, जब उन्होंने सामान्य श्रेणी में 73वीं रैंक और आरक्षित श्रेणी में दूसरी रैंक प्राप्त की।

"सीजीपीएससी की परीक्षा में सफलता पाने के लिए मुझे लगातार सालों तक संघर्ष करना पड़ा, और इसके साथ ही मुझे परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए चपरासी का काम भी करना पड़ा," शैलेंद्र ने बताया।

चपरासी से अधिकारी बनने का संघर्ष

शैलेंद्र के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जब वे चपरासी के पद पर कार्यरत थे, तो कुछ लोग उनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन शैलेंद्र ने कभी भी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, "किसी भी नौकरी की कोई छोटी-बड़ी नहीं होती। चाहे वह चपरासी हो या अधिकारी, हर पद की अपनी गरिमा होती है।"

शैलेंद्र के माता-पिता, जो एक किसान परिवार से हैं, उनके संघर्ष में हमेशा उनके साथ खड़े रहे। उनके पिता संतराम बांधे ने कहा, "शैलेंद्र ने कभी हार नहीं मानी। वह मेरी प्रेरणा हैं, और मुझे यकीन है कि वह देश की सेवा के लिए अन्य युवाओं को भी प्रेरित करेंगे।"

आज का संदेश

आज, शैलेंद्र कुमार बांधे की सफलता न केवल उनकी मेहनत का परिणाम है, बल्कि यह उन सभी युवाओं के लिए एक बड़ा संदेश है, जो सरकारी नौकरी की तैयारी में लगे हुए हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर इंसान के पास जज्बा और समर्पण हो, तो सफलता मिलनी तय है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।

शैलेंद्र ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि मुश्किलें सिर्फ अनुभव देती हैं, और अगर आप अपनी मेहनत में विश्वास रखते हैं, तो सफलता जरूर मिलेगी। उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा से यह भी स्पष्ट होता है कि जीवन में कभी भी कोई काम छोटा नहीं होता, और मेहनत से हर स्थिति को बदलने की ताकत इंसान में होती हैं।

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