संजय शाम को थका-मांदा घर पहुंचा तो उसकी पत्नी सुजाता ने तुरंत भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है। उसने चिंतित स्वर में पूछा, "क्या बात है, आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं?" संजय ने हल्की मुस्कान के साथ टालने की कोशिश की, "कुछ नहीं, बस ऐसे ही।" लेकिन सुजाता ने जोर देकर कहा, "आप मुझसे कुछ छिपा रहे हैं। अगर पैसों की दिक्कत है तो चिंता मत कीजिए, मैं घरों में काम कर रही हूं, तनख्वाह आ ही जाएगी।"
संजय की आंखें भर आईं। "अब तनख्वाह कहां से मिलेगी, जब नौकरी ही नहीं रही?" उसने धीमे स्वर में कहा। सुजाता अवाक रह गई। "क्या? तुम्हारा सेठ तो बहुत अच्छा था, फिर अचानक नौकरी क्यों चली गई?" उसने आश्चर्य से पूछा। "दुकान का बहुत नुकसान हो रहा था। पास में एक बड़ी दुकान खुलने के बाद ग्राहक दूसरी ओर चले गए। मालिक अब दुकान बंद कर रहे हैं," संजय ने उदास स्वर में जवाब दिया।
दूसरी ओर, उसी शाम श्याम जी भी घर पहुंचे तो बेहद परेशान थे। उनकी बेटी सांची ने देखा तो दौड़कर पानी ला दिया। पत्नी कविता भी चिंता में पड़ गई, "क्या हुआ, आप इतने उदास क्यों हैं?" श्याम जी ने दुकान की चाभी कविता के हाथ में रखते हुए कहा, "आज दुकान हमेशा के लिए बंद कर दी। अब उसमें कुछ नहीं बचा।"
कविता ने खुद को संभालते हुए कहा, "कोई बात नहीं, मैं यह चाभी मंदिर में रख रही हूं। भगवान ही हमें नई राह दिखाएंगे।" अगली सुबह श्याम जी आंगन में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उनके पास अब किसी ग्राहक के फोन का इंतजार नहीं था, न ही दुकान जाने की जल्दी। सांची यह सब देख रही थी। वह सोचने लगी, "पापा मेरी शादी के लिए पैसे कैसे जुटाएंगे? दुकान तो बंद हो गई है, अब कर्ज भी कौन देगा?"
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। कविता ने दरवाजा खोला, तो सामने संजय खड़ा था। "आओ संजय, अंदर आओ," कविता ने कहा। श्याम जी संजय को देखकर चौंक गए। "मैंने कहा था कि तुम्हारी बकाया तनख्वाह धीरे-धीरे चुका दूंगा, फिर आज क्यों आ गए?" संजय की आंखों में आंसू थे। "सेठ जी, मैं आपकी दुकान पर बीस साल से काम कर रहा हूं। अब घर पर बैठकर क्या करूं, समझ नहीं आ रहा। इसलिए चला आया।"
श्याम जी भी भावुक हो गए। "पर मैं तुम्हें नौकरी पर नहीं रख सकता। तनख्वाह कहां से दूंगा? अब काम ही कितना बचा है?" संजय निराश होकर चला गया, लेकिन श्याम जी की आंखों से भी आंसू बहने लगे। उधर, सांची ने साहिल को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया। रेस्तरां में मिलने पर उसने साहिल को सारी स्थिति बता दी।
साहिल ने उसे भरोसा दिलाया, "तुम चिंता मत करो, मैं अपने घरवालों से बात करूंगा।" लेकिन अगले दिन साहिल का फोन नहीं आया। जब सांची ने उसे फोन किया तो उसने बेरुखी से कहा, "मेरे पिता ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है। उन्होंने तुम्हारे पापा की दुकान के भरोसे हां की थी। अब जब वो दुकान ही नहीं रही, तो हम शादी नहीं कर सकते।"
सांची को बहुत गुस्सा आया। "तो तुम सिर्फ पैसों के लिए मुझसे शादी कर रहे थे?" साहिल ने ठहाका लगाते हुए कहा, "आजकल पैसा सबको चाहिए। अच्छे लड़के के लिए पैसा खर्च करना ही पड़ता है।" सांची ने झटके से फोन काट दिया और रोते हुए मां के पास पहुंची। "मम्मी, वे लोग लालची थे। अच्छा हुआ जो यह सच समय रहते सामने आ गया।"
दो दिन बाद कविता ने श्याम जी से कहा, "अब हमें सांची का रिश्ता कहीं और करना होगा। वे लोग अब शादी के लिए तैयार नहीं हैं।" श्याम जी को यह सुनकर गहरा सदमा लगा। उनकी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई थी। वे सोच में डूब गए कि आगे क्या होगा। कुछ दिनों बाद कविता ने श्याम जी को बाजार चलने को कहा। "बहुत दिनों से घर में बैठे हैं, कुछ सामान भी लेना है," उसने समझाया।
बाजार में कविता ने श्याम जी को एक बेंच पर बैठा दिया और खुद सामान लेने चली गई। तभी किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा। "अरे श्याम, तू यहां क्या कर रहा है?" सामने उनका बचपन का दोस्त मनोहर खड़ा था। श्याम जी ने फीकी हंसी के साथ कहा, "बस पत्नी के साथ आया था।"
"तेरी दुकान कैसी चल रही है?" मनोहर ने पूछा। श्याम जी ने सिर झुका लिया। "अब दुकान कहां रही… घाटे की वजह से बंद करनी पड़ी।" मनोहर ने गुस्से से कहा, "अरे, इतना कुछ हो गया और तूने मुझे एक फोन तक नहीं किया?"
श्याम जी बोले, "अब क्या बताऊं, किस्मत ही खराब थी।" मनोहर ने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, "चल मेरे साथ, तुझे कुछ दिखाना है।" वह श्याम जी को एक बड़े स्टोर में ले गया। "यहां क्यों लाया है? इसी ने मेरी दुकान बंद करवाई है," श्याम जी ने गुस्से में कहा। मनोहर हंस पड़ा। "चल अंदर," वह उन्हें मैनेजर के केबिन में ले गया। "देख, ये स्टोर अब तेरा है।"
श्याम जी चौंक गए। "क्या मजाक कर रहा है? मेरे पास तो एक पैसा नहीं है।" मनोहर ने कहा, "तेरे लिए मैंने बिना बताए यह स्टोर रजिस्टर करवा दिया था। अब यह तेरा है। धीरे-धीरे कंपनी का लोन चुका देना, और स्टोर पूरी तरह तेरा हो जाएगा।" श्याम जी की आंखों से आंसू बहने लगे। "मैं तेरा यह एहसान कैसे चुकाऊंगा?"
मनोहर मुस्कुराया। "बहुत आसान है। ये जो मैनेजर है, वह मेरा बेटा है। मैं चाहता हूं कि सांची उसकी दुल्हन बने। बोल, रिश्ता मंजूर है?" श्याम जी खुशी से रो पड़े। कुछ ही दिनों में सांची की शादी हो गई। संजय को भी वापस काम पर बुला लिया गया। इस तरह एक अंधेरी रात के बाद नई सुबह ने सबकी जिंदगी रोशन कर दी।