एफएमसीजी सेक्टर पहले ही कच्चे तेल, पाम ऑयल और अन्य जरूरी कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जूझ रहा है।
नई दिल्ली: मध्य पूर्व में जारी युद्ध ने भारत सहित दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर असर डालना शुरू कर दिया है। खासकर भारत की उपभोक्ता वस्तु कंपनियां यानी एफएमसीजी (FMCG) सेक्टर इस भू-राजनीतिक संकट से खासा प्रभावित हो सकता है। तेल, पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और अन्य आवश्यक कच्चे माल की लागत में संभावित वृद्धि के चलते कंपनियां सतर्क हो गई हैं। अगर हालात लंबे समय तक तनावपूर्ण बने रहते हैं तो भारतीय उपभोक्ताओं को रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं के लिए अपनी जेब और अधिक ढीली करनी पड़ सकती है।
युद्ध से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा: कच्चे माल की कीमतों में इजाफा
FMCG कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है कच्चे माल की लागत। साबुन, शैंपू, बिस्किट, खाने का तेल, स्नैक्स और डिटर्जेंट जैसी वस्तुओं को बनाने में जिन कच्चे माल का इस्तेमाल होता है, उनकी आपूर्ति और कीमतें सीधे तौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करती हैं। मध्य पूर्व में चल रहा युद्ध खासतौर पर तेल उत्पादन और आपूर्ति शृंखला को प्रभावित कर रहा है, जिससे परिवहन लागत और इनपुट सामग्री की कीमतें बढ़ सकती हैं।
गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के एक वरिष्ठ अधिकारी कृष्णा खटवानी के अनुसार, तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से कंपनी के उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। गोदरेज सिन्थोल साबुन और गुडनाइट जैसे उत्पाद बनाती है, जिनमें तेल आधारित इनपुट इस्तेमाल होता है। उनका मानना है कि यह बढ़ती लागत अंततः उपभोक्ता तक पहुंचाई जा सकती है, जिससे आम जनता पर बोझ बढ़ेगा।
पैकेजिंग लागत में भी बढ़ोतरी की आशंका
मध्य पूर्व संकट का असर केवल कच्चे तेल तक सीमित नहीं है। पैकेजिंग मटीरियल, जो कि प्लास्टिक और अन्य पेट्रोकेमिकल उत्पादों से बनते हैं, उनकी कीमतें भी तेजी से बढ़ सकती हैं। बिसलेरी इंटरनेशनल के मुख्य कार्यकारी एंजेलो जॉर्ज ने चेतावनी दी है कि अगर मध्य पूर्व के ऊर्जा ढांचे में रुकावट आती है तो प्लास्टिक आधारित पैकेजिंग महंगी हो जाएगी। बिसलेरी जैसे उत्पाद जिनकी पैकेजिंग लागत कुल लागत का बड़ा हिस्सा होती है, वे इस स्थिति से सीधा प्रभावित हो सकते हैं।
मांग में सुधार की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा
एफएमसीजी सेक्टर पिछले एक साल से मांग में गिरावट से जूझ रहा है। हालांकि हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती, केंद्र सरकार द्वारा बजट में टैक्स छूट और समय से मानसून आने के संकेतों के कारण कंपनियों को उम्मीद थी कि उपभोक्ताओं की मांग में तेजी आएगी। मगर मिडिल ईस्ट का युद्ध इन सकारात्मक संकेतों पर पानी फेरता दिख रहा है।
डाबर इंडिया के सीईओ मोहित मल्होत्रा ने कहा है कि रिटेल महंगाई दर में हाल ही में गिरावट दर्ज की गई थी और मानसून की अच्छी शुरुआत से बाजार में सुधार की संभावना बन रही थी, लेकिन अब भू-राजनीतिक तनाव से स्थिति बिगड़ सकती है। डाबर रियल जूस, हनी, हेयर ऑयल जैसे उत्पाद बनाती है और इन सभी की लागत कच्चे तेल की कीमतों से प्रभावित होती है।
शहरी बाजार सबसे ज्यादा प्रभावित
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहीं तो सबसे ज्यादा असर शहरी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता अपेक्षाकृत कीमत बढ़ने के बावजूद भी किसी हद तक खपत जारी रखते हैं, लेकिन शहरी ग्राहक कीमतों में थोड़ी बढ़त पर भी खरीदारी से पीछे हटने लगते हैं। यह स्थिति एफएमसीजी कंपनियों के मुनाफे पर सीधा असर डाल सकती है।
कंपनियों का यह भी कहना है कि वे आमतौर पर छह महीने तक का स्टॉक पहले से खरीदकर रखती हैं, लेकिन अगर युद्ध लम्बा खिंचता है और आपूर्ति शृंखला प्रभावित होती है तो यह भंडारण भी जल्द ही समाप्त हो सकता है। तब उन्हें ऊंची कीमतों पर कच्चा माल खरीदना पड़ेगा।
निर्यात पर भी संकट
बिसलेरी ने हाल ही में दुबई की एक प्रमुख रिटेल चेन के साथ साझेदारी कर पश्चिम एशिया और अफ्रीका में अपने उत्पादों का निर्माण और वितरण शुरू करने की योजना बनाई है। लेकिन युद्ध के चलते इस साझेदारी पर भी असर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में रुकावट और व्यापार मार्गों की असुरक्षा के कारण निर्यात में देरी और लागत में वृद्धि की आशंका है।
सरकार से सहयोग की उम्मीद
कंपनियों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि यदि हालात बिगड़ते हैं तो वह टैक्स में राहत देकर उन्हें सहयोग दे। पेट्रोलियम उत्पादों पर करों की समीक्षा और पैकेजिंग इंडस्ट्री को इनपुट टैक्स क्रेडिट की छूट जैसे कदम संकट से निपटने में मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही एफएमसीजी सेक्टर को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर रखने की मांग भी फिर से उठ सकती है।
क्या है आम जनता के लिए नतीजा?
अगर युद्ध लंबा खिंचता है और तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाती हैं, तो अगले तीन महीने के भीतर आम उपभोक्ताओं को रोजाना इस्तेमाल की वस्तुओं के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। साबुन, डिटर्जेंट, खाने का तेल, पैक्ड फूड, पानी की बोतलें, स्नैक्स, बिस्किट जैसे उत्पादों की कीमतों में 5 से 15 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है। यह बढ़ोतरी खुदरा मुद्रास्फीति को भी ऊपर खींच सकती है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा।