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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया तेज, 208 सांसदों ने किए महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया तेज, 208 सांसदों ने किए महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया अब औपचारिक रूप से आगे बढ़ गई है। सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा में उनके महाभियोग से जुड़े नोटिस पेश किए गए, जिन पर कुल 208 सांसदों के हस्ताक्षर हैं।

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। भारत के इतिहास में न्यायपालिका से जुड़ा यह मामला फिलहाल चर्चा में है, क्योंकि संसद के दोनों सदनों के कुल 208 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस प्रक्रिया को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में विधिवत नोटिस सौंप दिए गए हैं।

इस मामले में सबसे खास बात यह है कि विपक्षी गठबंधन इंडी.A (INDI.A) और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों ही पक्षों के सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद समेत कुल 145 सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। वहीं, राज्यसभा में सभापति को सौंपे गए प्रस्ताव पर 63 सांसदों के हस्ताक्षर हैं।

न्यायपालिका की साख को बचाने की दलील

बीजेपी नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि देश की न्यायपालिका की ईमानदारी, पारदर्शिता और स्वतंत्रता तभी बनी रह सकती है जब जजों के आचरण पर कोई प्रश्नचिन्ह न हो। यदि किसी न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगते हैं, तो संविधान के तहत संसद को यह अधिकार है कि वह महाभियोग प्रस्ताव लाकर ऐसी कार्यवाही करे। उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं और ऐसे में हमने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से आग्रह किया है कि कार्यवाही में तेजी लाई जाए।

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सैयद नासिर हुसैन ने भी कहा कि विपक्षी INDI.A गठबंधन इस मामले में पूरी तरह एकजुट है। उन्होंने कहा कि अब इस मामले की जांच होगी और यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो संविधान के मुताबिक न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

आखिर क्या है पूरा मामला?

यह मामला 14 मार्च 2025 की रात सामने आया था, जब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर रूम में अचानक आग लग गई। आग बुझाने के दौरान कथित तौर पर वहां करोड़ों रुपये की नकदी जली हुई हालत में मिली। एक मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि नोटों की बरामदगी को छिपाने की कोशिश की गई थी।

इस घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया था और उन्हें उनके मूल कार्यक्षेत्र इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के निर्देश पर तीन जजों की जांच समिति का गठन कर दिया गया था। इस मामले में जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार, कदाचार और न्यायिक मर्यादा के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे हैं। संसद में पेश नोटिस में इन आरोपों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

आगे की प्रक्रिया क्या होगी?

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और 217 के तहत किसी भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उनके पद से तभी हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव पारित हो। इसके लिए पहले जांच समिति द्वारा तथ्यों की पुष्टि की जाएगी। यदि जांच में आरोप साबित होते हैं तो संसद में बहुमत से प्रस्ताव पास कर राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही न्यायाधीश को उनके पद से हटाया जा सकता है।

भारतीय न्यायपालिका में इस तरह के महाभियोग प्रस्ताव बहुत ही दुर्लभ होते हैं। इससे पहले 1993 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रमास्वामी के खिलाफ महाभियोग लाया गया था, लेकिन प्रस्ताव संसद में पास नहीं हो सका था।

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