इटावा में कथावाचकों से जातिगत अभद्रता पर शंकराचार्य ने सवाल उठाए। बोले, अगर पवित्र कर दिया था तो कथा सुनने से इनकार क्यों किया गया?
UP News: इटावा में कथावाचक मुकुटमणि और उनके सहयोगी संत कुमार के साथ जातिगत आधार पर की गई अभद्रता के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मुद्दे पर लगातार दूसरे दिन तीखा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर कथावाचकों पर जल या मूत्र छिड़ककर उन्हें "पवित्र" कर दिया गया, तो फिर उनसे कथा सुनने से इनकार क्यों किया गया। यह सवाल सिर्फ घटना पर नहीं बल्कि मानसिकता पर भी निशाना है। उन्होंने पूछा कि अगर छिड़काव से कुछ नहीं बदला तो फिर वह किया ही क्यों गया।
एफआईआर पर उठाए सवाल
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जिन दो कथावाचकों पर गांव वालों ने हमला किया, उनके खिलाफ पहले ही एफआईआर हो जानी चाहिए थी। घटना के तुरंत बाद गिरफ्तारी होनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया। जब पूरे गांव ने विरोध किया और दबाव बना तब जाकर केस दर्ज किया गया। उन्होंने यह भी पूछा कि जब कथावाचकों की पहचान को लेकर संदेह था, तो दो आधार कार्ड सामने कैसे आए।
नाम के साथ 'पंडित' लगाना बताया धोखा
शंकराचार्य ने कहा कि कथावाचकों ने अपने नाम के साथ 'पंडित' शब्द जोड़ा जिससे लोगों को लगा कि वे ब्राह्मण हैं। लेकिन उच्चारण की अशुद्धता के कारण संदेह हुआ और पूछताछ में असलियत सामने आई। यह एक तरह से धोखा था। उन्होंने कहा कि गांव वालों की गलती यह है कि उन्होंने हिंसा की, जो नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन धोखा देने वाले भी क्षम्य नहीं हैं।
राजनीति करने वालों को भी घेरा
शंकराचार्य ने उन नेताओं पर भी निशाना साधा जो इस घटना को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देकर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास गलत है। उन्होंने कहा कि इस घटना को बहाना बनाकर यादव महासभा और पुलिस बलों के बीच तनाव और पथराव जैसी घटनाएं करना समाज में विभाजन पैदा करने का तरीका है। ऐसे लोगों को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
क्या कोई भी बन सकता है कथावाचक?
इस सवाल के जवाब में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संतुलित राय दी। उन्होंने कहा कि जो लोग कहते हैं कि हमारे शास्त्रों और परंपराओं में कथावाचक का कार्य विशेष जाति से जुड़ा हुआ है, वे भी गलत नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर, अगर कोई दूसरे विचार को मानता है तो उसकी भी मान्यता है। उन्होंने कहा कि समाज के नेतृत्व कर रहे लोगों को चाहिए कि वे दोनों पक्षों के विचारों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करें।
पिटने के बाद सम्मान, यह कैसा संदेश?
इटावा की घटना पर बोलते हुए शंकराचार्य ने कहा कि यह पहली बार देखा गया कि कोई व्यक्ति पिट कर आ रहा है और उसका सार्वजनिक रूप से शॉल उड़ाकर स्वागत किया जा रहा है। आमतौर पर पीड़ित के लिए संवेदना प्रकट की जाती है, न्याय दिलाने का भरोसा दिया जाता है। लेकिन यहां अभिनंदन किया जा रहा है, जो अस्वाभाविक है।