भारत का कोर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर जून 2025 में तीन महीने के उच्च स्तर पर जरूर पहुंचा, लेकिन आंकड़ों के भीतर झांके तो हालात उतने उत्साहजनक नहीं दिखते. सोमवार को जारी हुए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, आठ कोर सेक्टर्स की ग्रोथ जून में 1.7 प्रतिशत दर्ज की गई. ये आंकड़ा मई 2025 में दर्ज 1.2 प्रतिशत की तुलना में थोड़ा बेहतर है, लेकिन जून 2024 की 5 प्रतिशत की दर से काफी नीचे है.
कौन-कौन से हैं आठ कोर सेक्टर
इन आठ कोर सेक्टर में कोयला, क्रूड ऑयल, नैचुरल गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट्स, फर्टिलाइजर, इस्पात (स्टील), सीमेंट और बिजली शामिल हैं. देश की औद्योगिक गतिविधियों की बुनियाद इन्हीं क्षेत्रों पर टिकी होती है, इसलिए इनका प्रदर्शन सीधे-सीधे आर्थिक विकास को प्रभावित करता है.
जून में पांच सेक्टर में गिरावट, सिर्फ तीन में बढ़ोतरी
जून 2025 में जिन पांच सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई, उनमें कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, फर्टिलाइजर और बिजली प्रमुख हैं. कोयला उत्पादन में 6.8 प्रतिशत की गिरावट आई, जो खास तौर पर चिंताजनक है, क्योंकि यह सेक्टर बिजली उत्पादन और भारी उद्योग के लिए अहम है. कच्चे तेल का उत्पादन भी 1.2 प्रतिशत नीचे गया, जबकि नैचुरल गैस 2.8 प्रतिशत और फर्टिलाइजर 1.2 प्रतिशत घटा.
बिजली उत्पादन में भी गिरावट देखी गई, जिसका कारण जून की शुरुआत में देश के कई हिस्सों में हुई भारी बारिश को माना जा रहा है.
पहली तिमाही का हाल रहा फीका
वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में कुल मिलाकर आठ कोर सेक्टर की वृद्धि दर सिर्फ 1.3 प्रतिशत रही. बीते साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 6.2 प्रतिशत था. यानी इस बार की ग्रोथ, पिछले साल की तुलना में पांच प्रतिशत से भी कम रह गई. इसका सीधा असर पूरे आर्थिक विकास (GDP) पर पड़ सकता है, ऐसा अनुमान अर्थशास्त्रियों द्वारा लगाया जा रहा है.
सीमेंट और स्टील की ग्रोथ का क्या मतलब है
सीमेंट और इस्पात उत्पादन में जून महीने में लगभग 9 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि का आंकड़ा कई बातों की ओर इशारा करता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सरकार की ओर से चलाए जा रहे बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) से जुड़े प्रोजेक्ट्स, रियल एस्टेट सेक्टर में हलचल और निजी निवेश में सुधार का संकेत हो सकता है.
इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसी परियोजनाओं का असर भी इन सेक्टर की मांग पर दिखाई दे सकता है.
तेल और गैस सेक्टर बना चिंता की वजह
कच्चे तेल और गैस सेक्टर में लगातार गिरावट चिंता का विषय है. कच्चे तेल के उत्पादन में 1.2 प्रतिशत और गैस में 2.8 प्रतिशत की गिरावट इस ओर इशारा करती है कि ऊर्जा सेक्टर में उत्पादन के मोर्चे पर कुछ तकनीकी या लॉजिस्टिक दिक्कतें बनी हुई हैं.
ऊर्जा की मांग बढ़ने के बावजूद अगर उत्पादन गिरता है, तो इससे आयात निर्भरता बढ़ सकती है, जो देश के ट्रेड बैलेंस को प्रभावित कर सकती है.
बिजली उत्पादन क्यों हुआ कम
बिजली उत्पादन में गिरावट का कारण जून की शुरुआत में भारी बारिश माना जा रहा है. मानसून के समय कई राज्यों में तापमान में गिरावट आ गई, जिससे बिजली की मांग में कमी आई. इसके अलावा, जल स्रोतों पर निर्भर पावर प्लांट्स भी मानसून के शुरुआती प्रभाव से प्रभावित हुए.
क्या उम्मीद कर रहे हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सीमेंट और स्टील जैसे सेक्टर की मजबूती बनी रहती है, तो आगे निर्माण क्षेत्र में अच्छी गति देखने को मिल सकती है. लेकिन कोयला, क्रूड और गैस जैसे सेक्टर में गिरावट बरकरार रहती है, तो यह ऊर्जा सुरक्षा और औद्योगिक गतिविधियों पर असर डाल सकती है.
तीन महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंची ग्रोथ, लेकिन तस्वीर अभी अधूरी
जून में कोर सेक्टर की ग्रोथ भले ही तीन महीने के उच्च स्तर 1.7 प्रतिशत पर रही हो, लेकिन आंकड़ों के भीतर छिपा संदेश उतना मजबूत नहीं है. पांच बड़े सेक्टर की गिरावट और तिमाही स्तर पर ग्रोथ में भारी कमी से यह साफ है कि कोर सेक्टर को फिलहाल कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है.
अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है असर
आईसीआरए समेत कई ब्रोकरेज और रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि कोर सेक्टर की धीमी चाल का असर अप्रैल-जून की GDP ग्रोथ पर पड़ेगा. खासकर तब, जब मैन्युफैक्चरिंग और कंजम्पशन सेक्टर में पहले से ही सुस्ती बनी हुई है.
इसलिए आने वाले महीनों में कोर सेक्टर के प्रदर्शन पर निगाहें बनी रहेंगी. सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह संकेत है कि बुनियादी ढांचे की मजबूती के लिए और प्रयास करने होंगे, ताकि आर्थिक ग्रोथ को गति दी जा सके.