हिंदू पंचांग में शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष की तिथियों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन तिथियों के आधार पर शुभ और अशुभ कार्यों का निर्धारण होता है। नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता, पूर्णा और शून्य तिथियां विभिन्न मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश और व्यवसाय प्रारंभ के लिए मार्गदर्शक हैं। कृष्ण-पक्ष में चंद्रमा घटता है, इसलिए सभी कार्य नहीं किए जा सकते।
Shukla-Krishna Paksha: हिंदू धर्म में शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष की तिथियां मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। शुक्ल-पक्ष में चंद्रमा बढ़ता है और कृष्ण-पक्ष में घटता है, जिससे कार्यों की सफलता और शुभता प्रभावित होती है। नंदा, जया और पूर्णा तिथियां शुभ मानी जाती हैं, जबकि रिक्ता, शून्य और काली तिथियों में बड़े कार्य वर्जित होते हैं। यह ज्ञान हिंदू परिवारों को विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की योजना बनाने में मार्गदर्शन देता है और समय पर सही निर्णय लेने में मदद करता है।
कृष्ण-पक्ष: घटते चंद्रमा की तिथियां
कृष्ण-पक्ष की सभी तिथियों में हर तरह के शुभ कार्य नहीं किए जा सकते। चंद्रमा का आकार घटता रहता है, जिससे उसकी शक्ति कम होती है। हालांकि कुछ तिथियां, जैसे प्रतिपदा और एकादशी, विशेष कार्यों के लिए शुभ मानी जाती हैं।
कृष्ण-पक्ष की तिथियां इस प्रकार हैं: प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। यह 15-दिवसीय अवधि चंद्रमा के घटने के काल को दर्शाती है।
पंचांग के अनुसार तिथियों का महत्व
- नंदा तिथि: प्रत्येक माह की प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी को नंदा तिथि कहा जाता है। इस तिथि में अंतिम चौबीस मिनट को छोड़कर हर तरह के मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं।
- भद्रा तिथि: शुक्ल और कृष्ण पक्ष की द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी को भद्रा तिथि कहते हैं। इसमें पूजा, व्रत-जाप आदि कार्य शुभ माने जाते हैं, लेकिन घर में कोई बड़ा मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए।
- जया तिथि: प्रत्येक माह की तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी को जया तिथि कहते हैं। विद्या संबंधी कार्य, न्यायिक कार्य और वाहन खरीदने के लिए यह तिथि शुभ मानी जाती है।
- रिक्ता तिथि: दोनों पक्ष की चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि कहा जाता है। इस तिथि में तंत्र-मंत्र की साधना के लिए यह शुभ मानी जाती है, लेकिन गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए उचित नहीं है।
- पूर्णा तिथि: पंचमी, दशमी और पूर्णिमा को पूर्णा तिथि कहते हैं। अमावस्या को छोड़कर इन तिथियों पर मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं।
शून्य तिथि और काली तिथियां
पांच मुख्य तिथियों के अलावा शून्य तिथि भी होती है, जिसमें विवाह और बड़े मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। शून्य तिथियों में चैत्र कृष्ण अष्टमी, वैशाख कृष्ण नवमी, ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, आषाढ़ कृष्ण षष्ठी, मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी और अष्टमी, माघ कृष्ण पंचमी और माघ शुक्ल त्रयोदशी शामिल हैं।
इसके अलावा शुक्ल-पक्ष की पहली तिथि और कृष्ण-पक्ष की ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं तिथि को काली तिथि कहा जाता है। इन तिथियों में शुभ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि चंद्रमा डूबा और सूक्ष्म रूप से फलदायी होता है।
शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष के शुभ-अशुभ कार्य
- शुभ कार्य: नंदा, जया और पूर्णा तिथियों में विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय प्रारंभ और अन्य मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं।
- अशुभ कार्य: रिक्ता और शून्य तिथियों में बड़े मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। काली तिथियों में किसी भी तरह के शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।
- विशेष कार्य: भद्रा तिथियों में पूजा, व्रत और वाहन खरीदना शुभ होता है, लेकिन घर में बड़े मांगलिक कार्य से परहेज करें।
तिथियों का महत्व क्यों है?
हिंदू परंपरा में चंद्रमा का आकार और शक्ति कार्यों की सफलता और शुभता पर प्रभाव डालती है। जब चंद्रमा बढ़ रहा होता है, कार्यों का परिणाम बेहतर और सकारात्मक होता है। वहीं, घटते चंद्रमा के समय में विशेष सावधानी आवश्यक है। इसीलिए शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष के आधार पर कार्यों की योजना बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।