जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए तैयारी पूरी हो चुकी है, जिसमें विभिन्न प्रमुख दलों के उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेपी, कांग्रेस, नेकां (नेशनल कांफ्रेंस), पीडीपी सहित अन्य क्षेत्रीय दल जैसे अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी ने अपने प्रत्याशी उतारे है। पहले चरण में कुल 24 सीटों पर 219 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, और चार प्रमुख सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता हैं।
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में पहले चरण के विधानसभा चुनावों के दौरान कश्मीर घाटी की 16 सीटों और जम्मू संभाग की 8 सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। इन 24 सीटों पर कई बड़े दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार और क्षेत्रीय प्रभाव वाले संगठनों की मौजूदगी ने चुनावी माहौल को और रोचक बना दिया है।कश्मीर घाटी की 16 सीटों में से भाजपा केवल 8 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि बाकी सीटों पर कांग्रेस-नेकां गठबंधन, पीडीपी और अन्य क्षेत्रीय दल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कश्मीर की राजनीति में ध्रुवीकरण और स्थानीय मुद्दों की प्रमुखता के कारण यह मुकाबला बेहद जटिल हैं।
निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्थानीय प्रभाव और व्यक्तिगत कद के बलबूते पर प्रमुख दलों के उम्मीदवारों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के नेता भी चुनावी मैदान में हैं और उनका लक्ष्य यह दिखाना है कि भले ही संगठन पर प्रतिबंध लगा हो, उनके समर्थकों की संख्या अब भी मजबूत है। यह स्थिति कई सीटों पर वोटों के विभाजन का कारण बन सकती है, जिससे मुकाबले और भी दिलचस्प हो रहे हैं।
1. बिजबेहरा विधानसभा सीट - इल्तिजा मुफ्ती (पीडीपी)
श्रीगुफवाडा-बिजबेहरा विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रही हैं। यह सीट पीडीपी का गढ़ मानी जाती है, क्योंकि इल्तिजा के नाना, पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी मां महबूबा मुफ्ती ने भी इसी सीट से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। पिछले 25 वर्षों से पीडीपी का इस सीट पर मजबूत पकड़ रही है, और इसे इल्तिजा के लिए एक सुरक्षित सीट माना जा रहा हैं।
इल्तिजा मुफ्ती का मुकाबला भाजपा के सोफी यूसुफ और नेकां के बशीर अहमद शाह वीरी से हो रहा है, जो इसे एक दिलचस्प और प्रतिष्ठित मुकाबला बना रहा है। परिसीमन के बाद पहलगाम के कुछ गांव इस सीट में शामिल होने से क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव आया है, जिससे यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव परिणाम क्या होते हैं। बिजबेहरा की इस ऐतिहासिक सीट से जम्मू-कश्मीर को पहले भी दो मुख्यमंत्री मिले हैं, जो मुफ्ती परिवार से ही थे, जिससे इल्तिजा को इस चुनाव में बढ़त मानी जा रही हैं।
* बिजबेहरा विधानसभा सीट का इतिहास
बिजबेहरा विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। 1967 से लेकर अब तक इस सीट पर 9 बार विधानसभा चुनाव और उपचुनाव हो चुके हैं और इसमें पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला हैं।
१. पीडीपी का दबदबा: पीडीपी ने 6 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है, खासकर 1996 से अब तक यह सीट मुफ्ती परिवार के कब्जे में रही हैं।
२. नेकां की तीन जीत: नेशनल कॉन्फ्रेंस को तीन बार इस सीट पर जीत मिली है—1977, 1983, और 1987 में।
३. 1987 का नजदीकी मुकाबला: 1987 के चुनाव में नेकां ने मात्र 100 वोटों के अंतर से पीडीपी को हराया था, जो उस समय एक बहुत करीबी मुकाबला था।
४. मुफ्ती परिवार का प्रभुत्व: 1996 के बाद से इस सीट पर लगातार मुफ्ती परिवार का प्रभाव बना हुआ है, और इसे पीडीपी का गढ़ माना जाता हैं।
2. किश्तवाडा विधानसभा सीट - शगुन परिहार (भाजपा)
किश्तवाड़ विधानसभा सीट इस बार जम्मू-कश्मीर के चुनावी नक्शे पर एक प्रमुख केंद्र बनी हुई है, जहां बीजेपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां), और पीडीपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस सीट पर खासतौर से चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि शगुन परिहार, जिनके पिता और चाचा की 2018 में आतंकियों द्वारा हत्या कर दी गई थी, यहां से बीजेपी की उम्मीदवार हैं।
* किश्तवाड़ विधानसभा सीट का इतिहास
किश्तवाड़ विधानसभा सीट का इतिहास काफी रोचक है और यह जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो:
१. 1962 में किश्तवाड़ को विधानसभा सीट के रूप में स्थापित किया गया था।
२. नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) यहां सबसे प्रभावशाली पार्टी रही है, जिसने 6 बार (1962, 1977, 1987, 1996, 2002, 2008) चुनाव में जीत हासिल की है। इस पार्टी का क्षेत्र पर लंबे समय तक दबदबा रहा हैं।
३. कांग्रेस ने भी इस सीट पर 1967, 1972 और 1983 में जीत दर्ज कर क्षेत्र का नेतृत्व किया।
४. 2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने किश्तवाड़ सीट पर जीत हासिल की, जो इस क्षेत्र में पार्टी की बढ़ती पकड़ का संकेत था।
3. डुरु विधानसभा सीट - गुलाम अहमद मीर (कांग्रेस)
डुरू विधानसभा क्षेत्र दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर एक कठिन मुकाबले में हैं। यहां कुल दस उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिनमें पीडीपी के अशरफ मलिक, अपनी पार्टी के बशीर अहमद वानी शामिल हैं। वहीं, कोकरनाग आरक्षित सीट पर चौधरियों के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है। इस सीट पर नेकां के जफर अली खटाना, पीडीपी के हारूण रशीद खटाना, भाजपा के रोशन हुसैन खान और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के मोहम्मद वकार के बीच संघर्ष है। हालांकि, यह सीट हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रही हैं।
* डुरूविधानसभा सीट का इतिहास
१. 2002 और 2008: गुलाम अहमद मीर ने लगातार दो बार इस क्षेत्र से विधायक के रूप में जीत दर्ज की थी। इन वर्षों में कांग्रेस ने डुरू विधानसभा क्षेत्र पर अपना कब्जा बनाए रखा।
२. 2014 में पीडीपी ने इस सीट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में पीडीपी के सैयद फारूक अहमद अंद्राबी ने गुलाम अहमद मीर को केवल 161 वोटों से हराया। यह मुकाबला काफी कड़ा था और पीडीपी की जीत ने कांग्रेस की लंबे समय की पकड़ को चुनौती दी।
३. वर्तमान में डुरू विधानसभा क्षेत्र में कई उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें प्रमुख कांग्रेस के गुलाम अहमद मीर, पीडीपी के अशरफ मलिक और अपनी पार्टी के बशीर अहमद वानी शामिल हैं।
4. पुलवामा विधानसभा सीट - मो. खलील बंद (नेका)
पुलवामा विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। हाल ही में जेल से रिहा हुए वहीद उर रहमान पारा पीडीपी के प्रमुख उम्मीदवार हैं। उनकी रिहाई के बाद से उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है और वे इस बार विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे। पूर्व में तीन बार पुलवामा से विधायक रहे मोहम्मद खलील बंद ने 2002, 2008 और 2014 में पीडीपी के टिकट पर जीत हासिल की थी। वे अब नेकां (नेशनल कॉन्फ्रेंस) के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।
खलील बंद पीडीपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं, लेकिन उन्होंने 2019 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया और नेकां में शामिल हो गए। उनके नेकां के टिकट पर चुनाव लड़ने से मुकाबला और भी रोचक हो गया है, क्योंकि उन्होंने पहले पीडीपी में काफी प्रभावशाली भूमिका निभाई थी और उनकी वापसी अब नेकां के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करती हैं।
* पुलवामा विधानसभा सीट का इतिहास
१. 2002 से 2014 तक पीडीपी ने पुलवामा विधानसभा सीट पर लगातार जीत हासिल की थी, जिससे यह सीट पार्टी के प्रभाव क्षेत्र में रही।
२. पीडीपी के पूर्व नेता मोहम्मद खलील बंद ने इस सीट पर 2002, 2008 और 2014 में जीत हासिल की थी और पीडीपी के एक महत्वपूर्ण नेता रहे हैं। अब वे नेकां के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।
३. युवा नेता वहीद उर रहमान पारा पीडीपी ने उम्मीदवार के रूप में उतारा है। वहीद उर रहमान पारा हाल ही में जेल से रिहा हुए हैं और उनकी राजनीतिक वापसी को लेकर काफी चर्चा हैं।