Success Story: तीन बार प्रीलिम्स में असफलता के बाद, चौथे प्रयास में बने IFS टॉपर, जानें उनकी प्रेरणादायक सफलता

Success Story: तीन बार प्रीलिम्स में असफलता के बाद, चौथे प्रयास में बने IFS टॉपर, जानें उनकी प्रेरणादायक सफलता
Last Updated: 4 घंटा पहले

Success Story: वह कहानियां जिनमें सफलता के लिए कई प्रयासों की आवश्यकता होती है, हमें हमेशा प्रेरित करती हैं। विद्यांशु शेखर झा की सफलता की कहानी भी ऐसी ही है, जो कठिनाइयों और असफलताओं से भरी हुई थी, लेकिन इन सभी बाधाओं को पार करने के बाद उन्होंने IFS 2023 में 5वीं ऑल इंडिया रैंक प्राप्त की। उनकी यह सफलता न केवल उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम है, बल्कि उनके दृढ़ संकल्प और मानसिक मजबूती का भी प्रमाण हैं।

IFS के सफर की शुरुआत

विद्यांशु शेखर झा का UPSC सफर 2018 में शुरू हुआ था, जब उन्होंने पहली बार इस प्रतिष्ठित परीक्षा में भाग लिया। हालांकि उनका पहला प्रयास असफल रहा, वे सिर्फ 2 अंकों से प्रीलिम्स की कट-ऑफ से चूक गए। इस असफलता से निराश हुए बिना, उन्होंने अगले साल यानी 2020 में पुनः प्रयास किया, लेकिन इस बार वह केवल 0.67 अंकों से असफल हो गए। 2021 में, तीसरे प्रयास में भी वह एक अंक से कट-ऑफ से बाहर हो गए।

ये तीन प्रयास लगातार असफल होने के बाद उनकी उम्मीदें लगभग खत्म हो चुकी थीं। इस दौरान वह मानसिक रूप से थक चुके थे, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय खुद को पुनः उत्साहित किया। चौथे प्रयास में उम्मीदों के दबाव से मुक्त होकर, उन्होंने परीक्षा में भाग लिया। परिणामस्वरूप, उन्होंने CSE और IFS दोनों में सफलता हासिल की और CSE के रिजर्व लिस्ट में 49वां रैंक प्राप्त किया।

IFS पर फोकस चौथे प्रयास में मिली सफलता

हालांकि, 2022 में IFS के मेंस में वह सिर्फ 8 अंकों से फाइनल लिस्ट में नहीं आ सके, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2023 में, उन्होंने पूरी तरह से IFS पर ध्यान केंद्रित किया और अपनी मेहनत और समर्पण से 5वीं ऑल इंडिया रैंक हासिल की। यह उपलब्धि उनके संघर्ष, कड़ी मेहनत और धैर्य का परिणाम थी। विद्यांशु ने कहा, "UPSC एक बहुत मजबूत इच्छाशक्ति की परीक्षा है, इसलिए कभी हार मत मानो।"

 कोचिंग सामग्री पर अधिक निर्भरता से बचें

विद्यांशु शेखर झा ने अपनी सफलता के पीछे की कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। उन्होंने बताया कि, "मैंने अपने प्रारंभिक प्रयासों में कोचिंग मैगजीन पर बहुत अधिक निर्भर किया, जबकि समाचार पत्रों को पढ़ना ज्यादा जरूरी है।" इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि, "मेरे शुरुआती प्रयासों में मैंने टेस्ट सीरीज तो हल किए, लेकिन पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों को हल करने की अहमियत को नजरअंदाज किया। ये प्रमुख गलतियां थीं जिनसे उम्मीदवारों को बचना चाहिए।"

परिवार का समर्थन और शिक्षा का महत्व

विद्यांशु का परिवार दरभंगा, बिहार से है, लेकिन वह अब रांची, झारखंड में रहते हैं। उनके पिता एक व्यापारी हैं और उनकी मां शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हैं। उनकी एक छोटी बहन भी है, जो AIIMS में डॉक्टर हैं। विद्यांशु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रांची से प्राप्त की और 2017 में तमिलनाडु के वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सिविल इंजीनियरिंग में B.Tech किया। उनके परिवार ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया और उनके इस कठिन सफर में उनका साथ दिया।

 मिली सफलता जीवन का एक नया मोड़

विद्यांशु शेखर झा की कहानी हमें यह सिखाती है कि असफलताएं सिर्फ एक अस्थायी रुकावट होती हैं, यदि हम उनसे कुछ सीखें और आगे बढ़ने की इच्छा रखे। उनकी सफलता ने यह साबित कर दिया कि अगर किसी व्यक्ति में सच्ची मेहनत, समर्पण और धैर्य हो, तो वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है।

आज विद्यांशु शेखर झा IFS अधिकारी हैं, और उनकी सफलता न केवल उनके परिवार और दोस्तों के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह सभी UPSC उम्मीदवारों के लिए एक प्रेरणा है। वह इस बात का उदाहरण हैं कि कभी हार न मानने से सफलता जरूर मिलती हैं।

विद्यांशु की सफलता के पीछे की प्रेरणा

विद्यांशु शेखर झा ने अपनी सफलता का राज यह बताया कि उन्हें कभी हार मानने की आदत नहीं थी। उनका कहना था, "IFS की कट-ऑफ हमेशा CSE से अधिक होती है। जब मैंने पहले तीन प्रयासों में CSE को नहीं पार किया, तो IFS एक दूर का लक्ष्य लगता था। लेकिन आज, मैं IFS अधिकारी हूं। इसलिए बस कड़ी मेहनत करो और धैर्य रखो।"

विद्यांशु की यह कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो UPSC जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और जिन्होंने किसी भी कारण से असफलता का सामना किया है। उनका यह संदेश साफ है कि सफलता समय ले सकती है, लेकिन अगर आप पूरी लगन और मेहनत से काम करें, तो आप निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

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