प्रयागराज में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए घरों को ढहाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन करार देते हुए सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ितों के घरों के पुनर्निर्माण का खर्च वहन करे।
उत्तर प्रदेश: प्रयागराज में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए घरों को ढहाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन करार देते हुए सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ितों के घरों के पुनर्निर्माण का खर्च वहन करे।
सरकार की कार्रवाई असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "राज्य सरकार की यह कार्रवाई चौंकाने वाली है और गलत संदेश देती है। हम सरकार को पुनर्निर्माण का आदेश देंगे और इसका पूरा खर्च भी सरकार को ही उठाना होगा।" अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई को अवैध बताते हुए कहा कि नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं में वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और दो महिलाओं समेत पांच लोग शामिल हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि प्रशासन ने शनिवार देर रात डेमोलिशन नोटिस जारी किया और अगले दिन उनके घर तोड़ दिए गए। इससे उन्हें कानूनी रास्ता अपनाने का कोई अवसर नहीं मिला।याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि सरकार ने उनकी संपत्ति को जबरन गैंगस्टर अतीक अहमद से जोड़ दिया, जबकि उनका उससे कोई संबंध नहीं था। "हम नजूल प्लॉट के वैध पट्टेदार थे और हमने फ्रीहोल्ड के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन सरकार ने मनमाने तरीके से घर तोड़ दिए," उन्होंने कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को ठहराया गलत
इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि विवादित जमीन का पट्टा 1996 में समाप्त हो गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि कोई भी प्रशासनिक निर्णय नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकता। यूपी सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। हालांकि, जस्टिस ओका ने इस दावे को नकारते हुए पूछा कि अगर पर्याप्त समय दिया गया था, तो फिर इतनी जल्दबाजी में घर क्यों गिराए गए?
राज्य सरकार ने मामले को फिर से हाई कोर्ट भेजने का सुझाव दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि इससे केवल अनावश्यक देरी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद सरकार पर दबाव
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 21 मार्च 2025 को निर्धारित की है और तब तक सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख के बाद उत्तर प्रदेश सरकार पर भारी दबाव बन गया है। अदालत के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के किसी भी नागरिक के घर को तोड़ना असंवैधानिक हैं।