कमला हैरिस को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। क्या यह हार अमेरिका की मानसिकता का परिणाम है कि जनता महिला को राष्ट्रपति नहीं देखना चाहती? कई लोगों ने ट्रंप और हैरिस के बीच अंतर पर विचार व्यक्त किए।
US Election Result 2024: अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी बेबाक शैली और कड़ी राजनीति के कारण जीत हासिल की, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस को हार का सामना करना पड़ा। अगर कमला हैरिस चुनाव जीत जातीं, तो यह अमेरिका के इतिहास में पहला मौका होता जब एक महिला राष्ट्रपति बनती।
हालांकि, उनकी हार के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका की राजनीति में लैंगिक समानता या असमानता का प्रभाव पड़ रहा है। क्या कमला हैरिस की हार का कारण सिर्फ उनके महिला होने की वजह से था? क्या अमेरिका की जनता महिला राष्ट्रपति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है?
लैंगिक असमानता और ट्रंप को पसंद करने की वजह
चुनाव प्रचार के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि वे कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप में से किसे पसंद करते हैं, तो कई लोगों ने दोनों उम्मीदवारों के बीच लैंगिक असमानता का जिक्र किया। एक श्वेत महिला रेबेका ने कहा कि, "महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है, लेकिन जब विदेश नीति की बात आती है, तो हमें एक पुरुष नेता की जरूरत है, खासकर जब तीसरा विश्व युद्ध करीब हो।"
वहीं, एक 20 वर्षीय अश्वेत युवक ने कहा, "महिला अमेरिका की नेतृत्व नहीं कर सकती, यह मर्दों का काम है। महिलाओं में भावुकता ज्यादा होती है, जबकि हमें युद्ध की स्थिति में एक पुरुष नेता की जरूरत है।"
एक 50 वर्षीय बुजुर्ग ने भी लैंगिक असमानता को लेकर कहा, "लड़ाई ताकतवर और कमजोर की है। कमला हैरिस कमजोर हैं, क्योंकि वह एक महिला हैं, जबकि ट्रंप एक मजबूत पुरुष नेता हैं।"
अमेरिका में गर्भपात पर बढ़ी चिंता
चुनाव में गर्भपात (अबॉर्शन) भी एक अहम मुद्दा था, जिसपर कमला हैरिस ने अपनी सरकार बनने पर गर्भपात को कानूनी तौर पर मंजूरी देने का वादा किया था। हालांकि, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से इस मुद्दे पर चिंता और बढ़ गई है, खासकर महिलाओं के अधिकारों को लेकर।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और महिला अधिकारों पर असर
2022 के जून महीने में, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को मंजूरी देने वाले लगभग पांच दशक पुराने फैसले को पलट दिया। इस फैसले के अनुसार, गर्भपात को नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से गलत करार दिया गया, और कोर्ट ने एंटी-अबॉर्शन कानून को और कड़ा करने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, कई राज्यों में अबॉर्शन क्लीनिकों पर ताले लग गए, और महिलाओं को अबॉर्शन कराने के लिए सुरक्षित और कानूनी विकल्पों की कमी का सामना करना पड़ा।
इस फैसले के बाद, कई महिलाओं ने मजबूरी में असुरक्षित और अवैध तरीके से गर्भपात करवाने की कोशिश की। यह स्थिति अमेरिका में महिला स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। जहां एक ओर अमेरिका खुद को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र और सुपर पावर कहता है, वहीं दूसरी ओर यहां महिला असमानता का मुद्दा आज भी एक बड़ा संघर्ष बना हुआ है।