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Bihar Politics: एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती, जसुपा बना नया फैक्टर

Bihar Politics: एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती, जसुपा बना नया फैक्टर

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जसुपा की उपस्थिति ने एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती बढ़ा दी है। दोनों गठबंधन अपने गढ़ों की रक्षा और विरोधी क्षेत्रों में सेंध लगाने की रणनीति में जुटे हैं, सीटों के समीकरण पर ध्यान केंद्रित।

पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन दोनों को अपने गढ़ों को सुरक्षित रखने की चुनौती है। पिछली बार का करीबी मुकाबला और जन सुराज पार्टी (जसुपा) की उपस्थिति इस बार मुकाबले को और कड़ा कर सकती है। एनडीए को पिछले चुनाव में आठ जिलों में मिली हार को सुधारने की जरूरत है। वहीं, महागठबंधन को सीमांचल क्षेत्र में वोटों के विभाजन से बचने की चुनौती है।

गढ़ों में सेंध लगाने की जंग

विरोधी के किलों में सेंध लगाने के प्रयास के साथ-साथ दोनों गठबंधन अपने गढ़ों को बचाए रखने में जुटे हैं। पिछले चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच केवल 11,150 मतों का अंतर था। इस अंतर ने 15 सीटों का फर्क पैदा किया। इसलिए रणनीतिक दृष्टि से गहन पुनरीक्षण और सटीक योजना दोनों पक्षों के लिए जरूरी है।

एनडीए की रणनीति

एनडीए में भाजपा की देखरेख में चुनावी रणनीति तैयार की जा रही है। बिहार को पांच परिक्षेत्र में बांटा गया है – पटना, मगध-शाहाबाद, कोसी-सीमांचल, सारण-चंपारण और मिथिलांचल। प्रत्येक परिक्षेत्र में वरिष्ठ नेता और संगठन महामंत्री विशेष जिम्मेदारी निभा रहे हैं। एनडीए का लक्ष्य अपने गढ़ों को मजबूत करना और विरोधी गढ़ों में सेंध लगाना है।

भाजपा ने बूथ सशक्तीकरण और विधानसभा क्षेत्र स्तर पर रणनीति तय की है। इसके लिए राज्यों की लगभग डेढ़ सौ महिला नेता भी घर-घर जाकर महिलाओं से संवाद और उन्हें साधने का काम कर रही हैं। ये प्रयास मुख्य रूप से उन विधानसभा क्षेत्रों में हैं जहां पिछली बार एनडीए की जीत हुई थी लेकिन अब अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है।

महागठबंधन की तैयारी

महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के वरिष्ठ नेता भी रणनीतिक सलाहकार के रूप में शामिल हैं। सीमांचल और मिथिलांचल में जसुपा और एआईएमआईएम के बढ़ते प्रभाव से महागठबंधन को अपने वोटों के धुव्रीकरण से बचना है। संगठनात्मक दृष्टि से कांग्रेस और राजद ने रणनीतिक टीमों को विभिन्न हिस्सों में तैनात किया है ताकि गढ़ों की रक्षा की जा सके।

पिछली चुनावी तस्वीर

पिछले तीन चुनावों (2010, 2015, 2020) में सत्ता एनडीए और महागठबंधन के बीच स्थिर नहीं रही। तिरहुत प्रमंडल में भाजपा का दबदबा रहा, कोसी प्रमंडल जदयू का गढ़ बना। मगध-सारण में राजद मजबूत रहा, जबकि सीमांचल में कांग्रेस का प्रभाव रहा। पिछले चुनाव में सारण प्रमंडल के परिणाम ने राजद को नंबर एक पार्टी बनाया।

सीटों का प्रमंडलवार विश्लेषण

एनडीए और महागठबंधन के लिए प्रत्येक प्रमंडल की रणनीति महत्वपूर्ण है। तिरहुत में एनडीए ने 33 और महागठबंधन ने 16 सीटें जीती थीं। सारण में महागठबंधन ने बढ़त बनाई जबकि एनडीए को केवल 9 सीटें मिलीं। दरभंगा में एनडीए ने 22 और महागठबंधन ने 8 सीटें जीती। अन्य प्रमंडलों में भी गढ़ों की रक्षा और सेंधमारी दोनों ही गठबंधनों की प्राथमिकता है।

सीमांचल और शाहाबाद की चुनौती

पूर्व में सीमांचल और पश्चिम में शाहाबाद एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण रहे हैं। पिछली बार शाहाबाद के चार जिलों में एनडीए का खाता नहीं खुला था। सीमांचल में भी एनडीए खाली हाथ रही। इस बार भाजपा ने सीमांचल और शाहाबाद में दोहरी रणनीति अपनाई है। प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री ने अलग-अलग कार्यक्रम कर जन संपर्क बढ़ाया।

महागठबंधन की चाल-ढाल

महागठबंधन विशेषकर राजद और कांग्रेस सीमांचल और मिथिलांचल में पैठ बनाने में जुटे हैं। राजद मिथिलांचल में सामाजिक और सांस्कृतिक अपेक्षाओं को साधने का प्रयास कर रहा है। वहीं एनडीए ढांचागत विकास और राष्ट्रवादी अवधारणा के माध्यम से जन-मन को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

वोटों का धुव्रीकरण

जसुपा और एआईएमआईएम की उपस्थिति वोटों के बिखराव का कारण बन सकती है। महागठबंधन ने मुस्लिम वोटों का समर्थन पाने के लिए वक्फ कानून और एसआईआर के खिलाफ मुखर होकर अपने आप को हितैषी साबित करने की कोशिश की है। वहीं एनडीए बूथ स्तर पर रणनीति सुदृढ़ कर गढ़ों की रक्षा और विरोधी गढ़ों में सेंधमारी के लिए तैयार है।

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