आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई। इसमें दो मिनट का मौन रखा गया और इमरजेंसी का विरोध करने वालों को श्रद्धांजलि दी गई।
New Delhi: आपातकाल की घोषणा को 50 साल पूरे हो गए हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में 1975 की इमरजेंसी के दौरान संविधान की भावना को कुचलने के विरोध में आवाज़ उठाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि दी गई और उनके बलिदान को सम्मानित करने का संकल्प लिया गया।
दो मिनट का मौन और श्रद्धांजलि
बैठक की शुरुआत में उन सभी अनगिनत व्यक्तियों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया जिन्होंने आपातकाल के काले दौर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया। मंत्रियों ने माना कि इमरजेंसी के समय नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को छीन लिया गया था और उन्होंने गंभीर मानसिक और सामाजिक दमन झेला।
प्रस्ताव पारित कर लोकतांत्रिक मूल्यों पर दोहराया भरोसा
बैठक में एक आधिकारिक प्रस्ताव (Resolution) पारित किया गया जिसमें यह संकल्प लिया गया कि उन सभी लोगों को याद रखा जाएगा जिन्होंने संविधान की मूल भावना की रक्षा के लिए संघर्ष किया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस प्रस्ताव को पढ़ा और उसमें इमरजेंसी के समय के दमन का विस्तार से उल्लेख किया गया।
नव निर्माण आंदोलन और संपूर्ण क्रांति का उल्लेख
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि 1974 में नव निर्माण आंदोलन और जेपी (जयप्रकाश नारायण) द्वारा चलाए गए संपूर्ण क्रांति अभियान को जिस सख्ती से कुचला गया, वह इमरजेंसी की शुरुआत का संकेत था। सरकार ने उन प्रयासों की निंदा की जिसमें जनता की आवाज़ को दबाया गया और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया गया।
संघवाद और स्वतंत्रता पर हमला
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान संघवाद (Federalism) को कमजोर किया गया और नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया। यह भारत के संवैधानिक इतिहास का ऐसा समय था जब राज्य और केंद्र के बीच संतुलन खत्म करने की कोशिश हुई थी।
भारतीय संविधान में जनता की आस्था को दोहराया
कैबिनेट बैठक में यह भी दोहराया गया कि भारत की जनता संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों में पूर्ण आस्था रखती है। सरकार ने कहा कि भले ही अतीत में संविधान को चुनौती देने की कोशिश की गई, लेकिन भारत की जनता ने हर बार लोकतंत्र को मजबूत बनाया है।
इमरजेंसी: भारतीय लोकतंत्र का सबसे कठिन दौर
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई थी। इसका मकसद राजनीतिक अस्थिरता को संभालना बताया गया, लेकिन धीरे-धीरे यह स्पष्ट हुआ कि सत्ता को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगी, नेताओं को जेल में डाला गया और न्यायपालिका पर दबाव बढ़ा।