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महात्मा गांधी: सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता के अमर प्रतीक

महात्मा गांधी: सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता के अमर प्रतीक

महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग से स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। उनका जीवन नैतिकता, आत्मनिर्भरता और सहिष्णुता का संदेश देता है, जो आज भी समाज को शांति और एकता की प्रेरणा प्रदान करता है।

Mahatma Gandhi: आज भी, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 78 वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर है, राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी का जीवन और विचार दुनिया भर के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। 2 अक्टूबर 1869 को तटीय गुजरात के पोरबंदर में जन्मे गांधी, न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख चेहरे थे, बल्कि उन्होंने अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों को राजनीतिक आंदोलन का आधार बनाकर वैश्विक स्तर पर एक नई दिशा दी।

बचपन और पारिवारिक संस्कार

गुजराती हिंदू मोध बनिया परिवार में जन्मे गांधी के पिता करमचंद उत्तमचंद गांधी पोरबंदर रियासत के दीवान रहे। मां पुतलीबाई गहरे धार्मिक संस्कारों वाली महिला थीं, जिनकी भक्ति, व्रत-उपवास और अनुशासित जीवन शैली ने गांधी के व्यक्तित्व पर गहरा असर डाला। गांधी बचपन में अत्यंत चंचल थे, लेकिन धार्मिक कथाओं, जैसे राजा हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कहानियों ने उनके भीतर सत्य और नैतिकता के प्रति गहरी आस्था पैदा की।

शिक्षा और लंदन प्रवास

प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में पूरी करने के बाद गांधी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा कपाड़िया से हुआ। युवावस्था में ही उन्होंने लंदन जाकर कानून की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। 1888 में उन्होंने इनर टेम्पल में दाखिला लिया और वकालत की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने अपनी मां से वादा किया कि वे मांस, शराब और स्त्रियों के संबंध में संयम का पालन करेंगे—एक वादा जो उन्होंने पूरी निष्ठा से निभाया।

दक्षिण अफ्रीका: संघर्ष का पहला अध्याय

1893 में गांधी एक मुकदमे में भारतीय व्यापारी का प्रतिनिधित्व करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। यहां रंगभेद और भेदभाव के कटु अनुभवों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। रेलगाड़ी में प्रथम श्रेणी का टिकट होते हुए भी उन्हें केवल रंगभेद के कारण डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया। यह घटना उनके भीतर गहरे अन्याय-बोध को जगा गई।

दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों तक गांधी ने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और पहली बार ‘सत्याग्रह’ की अवधारणा को प्रयोग में लाया। उन्होंने नस्लीय कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध, सत्य पर आधारित दृढ़ता और नैतिक बल का प्रयोग किया, जिससे उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली।

भारत वापसी और स्वतंत्रता संग्राम

1915 में, गोपाल कृष्ण गोखले के निमंत्रण पर गांधी भारत लौटे। जल्द ही वे किसानों, मजदूरों और आम जनता के आंदोलनों में सक्रिय हो गए। चंपारण सत्याग्रह (1917) में उन्होंने नील की खेती के लिए मजबूर किए जा रहे किसानों के पक्ष में खड़े होकर अंग्रेज प्रशासन को झुकने पर मजबूर किया। खेड़ा सत्याग्रह (1918) में अकाल और बाढ़ से प्रभावित किसानों को कर माफी दिलाई।

1920 में गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सर्वोच्च नेता बने और असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, स्वदेशी अपनाना और खादी को प्रोत्साहन, उनके अभियान के प्रमुख स्तंभ थे। उन्होंने स्वयं धोती पहनकर और चरखा कातकर आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।

दांडी मार्च और नमक कानून तोड़ना

1930 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ दांडी मार्च शुरू किया। वे 78 साथियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक 400 किलोमीटर पैदल चले। रास्ते में हजारों लोग उनसे जुड़ते गए।

दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून तोड़ा। यह शांतिपूर्ण विरोध ब्रिटिश राज के खिलाफ जनएकता का प्रतीक बन गया और स्वतंत्रता आंदोलन को नई ताकत मिली।

भारत छोड़ो आंदोलन

1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों से भारत को तुरंत आज़ाद करने की मांग करते हुए 'भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू किया। उन्होंने देशवासियों से कहा कि वे डरें नहीं और अहिंसक तरीकों से अंग्रेज़ी शासन का विरोध करें। यह आंदोलन पूरे देश में तेज़ी से फैल गया और लाखों लोग इसमें शामिल हुए।

अंग्रेज़ सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए गांधी, कांग्रेस के बड़े नेताओं और हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया। इसके बावजूद आंदोलन ने आज़ादी की चाह को और मजबूत किया और ब्रिटिश राज पर भारी दबाव बनाया, जो अंततः 1947 में स्वतंत्रता का रास्ता बना।

स्वतंत्रता और विभाजन की त्रासदी

1947 में भारत आज़ाद हुआ, लेकिन गांधी खुश नहीं थे। देश का बंटवारा और हिंदू-मुस्लिम हिंसा ने उन्हें बहुत दुखी कर दिया। उन्होंने दंगे रोकने के लिए कई इलाकों का दौरा किया और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। गांधी ने हिंसा खत्म करने के लिए उपवास भी रखा।

हत्या और अमर विरासत

30 जनवरी 1948 को, नई दिल्ली में प्रार्थना सभा के दौरान, नाथूराम गोडसे ने गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी मृत्यु पर पूरे विश्व ने शोक व्यक्त किया।

गांधी के विचार—सत्य, अहिंसा, आत्मनिर्भरता और धार्मिक सहिष्णुता—आज भी राजनीतिक आंदोलनों और नागरिक अधिकारों के संघर्षों की नींव बने हुए हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और कई वैश्विक नेताओं ने उनके सिद्धांतों को अपनाया।

गांधी के सिद्धांतों की आज की प्रासंगिकता

आज, जब दुनिया हिंसा, असहिष्णुता और पर्यावरण संकट जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, गांधी का मार्गदर्शन और भी प्रासंगिक हो गया है। उनका मानना था कि सामाजिक परिवर्तन केवल राजनीतिक सत्ता बदलने से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत आचरण, नैतिकता और सामूहिक जिम्मेदारी से संभव है। गांधी जयंती (2 अक्टूबर) न केवल भारत में राष्ट्रीय अवकाश है, बल्कि इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

महात्मा गांधी का जीवन सत्य, अहिंसा और नैतिक मूल्यों का अद्वितीय उदाहरण है। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से स्वतंत्रता संग्राम को जनांदोलन बनाया और विश्व को अहिंसा की शक्ति दिखाई। उनका संदेश आज भी समाज में एकता, सहिष्णुता और न्याय की राह दिखाता है, जो समय के साथ और अधिक प्रासंगिक हो गया है।

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