सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और सवाल उठाया है कि जब सरकार विशेष कानून बना रही है, तो फिर उन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें और जरूरी ढांचा क्यों नहीं तैयार किया जा रहा।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और पूछा है कि जब आप महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) जैसे सख्त कानून बना रहे हो तो इन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का ढांचा क्यों नहीं तैयार किया जा रहा। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी भिवंडी के कांग्रेस पार्षद मनोज मातरे की हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान की।
इस केस में मुख्य आरोपी प्रशांत भास्कर मातरे पिछले 8 साल से जेल में बंद है और सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर आप विशेष कानून बना रहे हैं तो उन पर सुनवाई के लिए तेज और प्रभावी तंत्र भी बनाना होगा।
कोर्ट ने कहा- 'स्पेशल स्टैच्यूट हो तो स्पेशल ट्रायल का सिस्टम क्यों नहीं'?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची शामिल थे, ने महाराष्ट्र सरकार के वकील से पूछा कि अब तक क्यों MCOCA मामलों के लिए विशेष अदालतों का गठन नहीं किया गया? कोर्ट ने कहा कि जब आप संगठित अपराध के खिलाफ कानून बना रहे हो, तो उन मामलों की सुनवाई के लिए तेज, पारदर्शी और अलग व्यवस्था अनिवार्य है।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि कई गैंगस्टर जेल में बैठे हैं लेकिन मुकदमे की धीमी प्रक्रिया के कारण कार्रवाई से बच रहे हैं। ऐसे मामलों में न्याय में देरी का फायदा अपराधियों को मिल रहा है, जो कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
2017 का मामला, 2026 तक पूरी हो सुनवाई- सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने भिवंडी-निजामपुर नगर निगम के कांग्रेस पार्षद मनोज मातरे की हत्या से जुड़े मामले में स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा कि जनवरी 2026 तक हर हाल में इस मामले की सुनवाई पूरी हो। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि इस केस की हर महीने कम से कम दो बार सुनवाई होनी चाहिए ताकि मामला अनावश्यक रूप से लंबा न खिंचे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर तय समयसीमा में सुनवाई पूरी नहीं होती तो आरोपी को जमानत मिल सकती है। इस मामले में करीब 200 गवाहों की सूची कोर्ट के सामने रखी गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि इतने गवाहों के बयान दर्ज करने में वर्षों लग सकते हैं। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को निर्देश दिए कि केवल अहम और मुख्य गवाहों की पहचान की जाए और उन्हीं को कोर्ट में पेश किया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि 'आजकल सच के लिए खड़े होने वाले लोग कम हैं, कई बार गवाह दबाव में मुकर जाते हैं।' इसलिए गवाहों की सूची को संक्षिप्त और सटीक रखा जाए ताकि न्याय प्रक्रिया बाधित न हो।
अब तक क्या हुआ इस मामले में?
यह मामला 14 फरवरी 2017 का है, जब कांग्रेस पार्षद मनोज मातरे की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। आरोपियों ने चॉपर और हथियारों से हमला किया था। पुलिस ने इस मामले में प्रशांत भास्कर मातरे सहित कुल 8 लोगों को गिरफ्तार किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि उपलब्ध सबूतों से आरोपी मुख्य साजिशकर्ता प्रतीत होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बचाव पक्ष के वकीलों को भी सख्त निर्देश दिए कि वे अनावश्यक स्थगन की मांग न करें और सहयोग करें ताकि मुकदमे को जल्दी निपटाया जा सके।