उत्तराखंड में वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति को लेकर कांग्रेस पार्टी सक्रिय हो गई है। भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए कांग्रेस इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (SC), जनजाति (ST) और अन्य कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगी।
देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है, और इस बार कांग्रेस ने 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बड़ी रणनीतिक तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी का फोकस अब साफ है अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखते हुए चुनावी जमीनी पकड़ को मजबूत करना।
कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव लाने का फैसला किया है, जिसमें कमजोर वर्गों की भागीदारी को बढ़ावा देने, सामूहिक नेतृत्व को प्राथमिकता देने और भाजपा के जातीय राजनीति के मुकाबले में मजबूत खड़ा होने का खाका तैयार किया गया है।
2027 में भाजपा से सीधी टक्कर की तैयारी
उत्तराखंड में पिछले एक दशक में कांग्रेस को लगातार पराजय का सामना करना पड़ा है—चाहे वह लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। वर्ष 2027 के लिए कांग्रेस अब जातीय जनगणना, सामाजिक न्याय और दलित-पिछड़े वर्गों के मुद्दों के सहारे भाजपा के विजय रथ को रोकने की रणनीति पर काम कर रही है।
नई दिल्ली में हुई बैठक में पार्टी हाईकमान ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि उत्तराखंड में अब व्यक्तिगत नेतृत्व या क्षेत्रीय गुटबाज़ी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सामूहिक नेतृत्व और जातीय संतुलन पर आधारित संगठन ही कांग्रेस को पुनर्जीवन देगा।
ओबीसी, एससी-एसटी, अल्पसंख्यकों पर विशेष फोकस
उत्तराखंड की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा लगभग 78% ओबीसी और सामान्य वर्ग से आता है। इसके अतिरिक्त, अनुसूचित जाति की आबादी करीब 19% और अनुसूचित जनजातियों की लगभग 3% हिस्सेदारी है। कांग्रेस ने इन आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट रणनीति बनाई है कि उसे अपनी जड़ें मजबूत करनी हैं वहीं से जहां भाजपा ने अभी तक पूरी तरह नियंत्रण नहीं किया है।
हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और उत्तरकाशी जैसे जिले, जहां ओबीसी समुदाय की संख्या अधिक है, कांग्रेस के लिए खास रणनीतिक केंद्र बनेंगे। इन जिलों में पार्टी 2022 में कुछ सीटें जीतने में सफल रही थी, जो अब उसके लिए 2027 की नींव बन सकती हैं।
प्रशिक्षण और जमीनी जुड़ाव पर जोर
प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष करण माहरा ने बताया कि कांग्रेस ने अब संगठन को सक्रिय करने और हर वर्ग को जोड़ने का काम युद्ध स्तर पर शुरू कर दिया है। सभी जिलों में प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं, जहां कार्यकर्ताओं को सामाजिक न्याय, कांग्रेस की विचारधारा, और मौजूदा सरकार की नीतियों की खामियों पर आधारित संवाद तैयार करने को कहा गया है।
ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के युवाओं को विशेष रूप से संगठन में जोड़ा जा रहा है। साथ ही, महिलाओं और बालिकाओं पर हो रहे अत्याचारों पर मुखर रहने की रणनीति अपनाई जा रही है, ताकि पार्टी संवेदनशील मुद्दों पर अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सके।
जातीय जनगणना बनेगी राजनीतिक हथियार
जातीय जनगणना, जिसे कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाया है, उत्तराखंड में भी पार्टी का प्रमुख चुनावी अस्त्र बनने जा रहा है। पार्टी इसे सामाजिक न्याय की दिशा में पहला कदम मान रही है, और इसका इस्तेमाल भाजपा के जातीय ध्रुवीकरण के खिलाफ हथियार के रूप में करेगी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता का मानना है कि भाजपा जहां एक खास वर्ग के वोट बैंक पर केंद्रित रहती है, वहीं कांग्रेस सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व और सम्मान देने की बात करती है। इसी नीति के तहत अब सभी विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे चेहरों को सामने लाया जाएगा, जो कमजोर वर्गों से आते हों और जनता से सीधा जुड़ाव रखते हों।
‘अकेले नहीं, सामूहिक नेतृत्व ही बनेगा कांग्रेस की पहचान’
हाईकमान ने इस बार यह साफ कर दिया है कि उत्तराखंड में ‘अपनी ढपली, अपना राग’ की नीति नहीं चलेगी। पार्टी के सभी नेता अब मिलकर काम करेंगे और सामूहिक नेतृत्व की छवि बनाएंगे। इसके तहत कांग्रेस अब बूथ लेवल से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक, हर स्तर पर समावेशी नेतृत्व सुनिश्चित करने पर काम कर रही है।
यही नहीं, पार्टी ने महिला, युवा और छात्र संगठनों को भी कमजोर वर्गों में जागरूकता फैलाने और कांग्रेस से जोड़ने का टास्क सौंपा है। छात्र संघ चुनावों से लेकर पंचायत स्तर तक, पार्टी का लक्ष्य है कि वह अपनी विचारधारा को हर वर्ग तक पहुंचाए।