माँ ब्रह्मचारिणी: नवरात्रि की दूसरी देवी

माँ ब्रह्मचारिणी: नवरात्रि की दूसरी देवी
Last Updated: 2 घंटा पहले

नवरात्रि के दूसरे दिन, श्रद्धालु माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। माँ ब्रह्मचारिणी, जिन्हें देवी अपर्णा भी कहा जाता है, आदिशक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप हैं। उनका नाम "ब्रह्मचारिणी" इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने अपने तप और साधना में ब्रह्मा के प्रति समर्पण किया है।

तपस्या का ऐतिहासिक विवरण

माता ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या के दौरान अत्यंत कठिनाईयों का सामना किया। उन्होंने पहले फल-फूल के आहार से 1000 साल बिताए और फिर धरती पर सोते समय पत्तेदार सब्जियों का सेवन करते हुए अगले 100 साल व्यतीत किए।

इसके बाद, माँ ने भगवान शिव की उपासना के लिए 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार लिया।

उनकी तपस्या में तीव्रता लाते हुए, उन्होंने बिल्व पत्र भी खाना छोड़ दिया और बिना किसी भोजन या जल के अपनी तपस्या को जारी रखा। उनकी इस कठिन तपस्या के कारण उन्हें "अपर्णा" का नाम मिला।

पूजा और उपासना

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का दिन चैत्र या अश्विन शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है और भक्त उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं।

सवारी: माँ ब्रह्मचारिणी नंगे पैर चलती हैं, जो उनके तप और साधना के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

अत्र-शस्त्र: उनके दो हाथ होते हैं, जिनमें दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। यह उनकी साधना और ध्यान की ओर संकेत करता है।

ग्रह: माता का संबंध मंगल ग्रह से है, जो भाग्य और समृद्धि का प्रदाता है।

शुभ रंग: माँ का शुभ रंग गहरा नीला है, जो शक्ति और भक्ति का प्रतीक है।

समापन

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से भक्तों को मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के इस पावन पर्व पर, सभी श्रद्धालुओं से निवेदन है कि वे माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाने का प्रयास करें।

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