बिहार चुनाव से पहले RJD और JMM में सीट बंटवारे को लेकर टकराव बढ़ गया है। JMM सीमावर्ती इलाकों में 12 सीटों की मांग कर रहा है, जबकि RJD झुकने को तैयार नहीं दिख रही।
Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं और इसी के साथ महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर असहमति सामने आने लगी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर तनातनी बढ़ गई है। झामुमो बिहार में 12 सीटों पर दावा कर रहा है, खासकर उन इलाकों में जो झारखंड से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में आते हैं। वहीं, राजद इस मांग को लेकर सहज नहीं है और झामुमो की राजनीतिक ताकत को लेकर आश्वस्त नहीं दिख रही।
JMM की मांग: सीमावर्ती इलाकों में हिस्सेदारी
झारखंड की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले JMM का कहना है कि बिहार के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में उसका जनाधार है और वहां उसकी मजबूत राजनीतिक उपस्थिति रही है। पार्टी के महासचिव विनोद पांडेय ने साफ कहा है कि JMM राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का हिस्सा है, इसलिए बिहार में उसके कार्यकर्ताओं की भावनाओं और संगठन की उपस्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। झामुमो ने जिन 12 सीटों पर दावा ठोका है, वे अधिकतर संथाल परगना सीमा से लगे बिहार के विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां JMM लंबे समय से सक्रिय है।
राजद का रुख: झामुमो की मांग से दूरी
दूसरी ओर, RJD का रुख उतना सहयोगात्मक नहीं दिख रहा है। पार्टी ने औपचारिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया है कि JMM बिहार में कोई प्रमुख राजनीतिक ताकत है। राजद के नेताओं का कहना है कि JMM चाहे तो बिहार में चुनाव लड़ सकता है, लेकिन उसे गठबंधन में कितनी सीटें मिलेंगी, यह उसके प्रभाव और योगदान पर निर्भर करेगा। यह बयान JMM को खटक सकता है क्योंकि वह खुद को गठबंधन का सम्मानजनक हिस्सा मानता है।
गठबंधन को बनाए रखने की कोशिशें जारी
हालांकि इन मतभेदों के बावजूद दोनों दलों के बीच गठबंधन बनाए रखने की कोशिशें जारी हैं। झामुमो के वरिष्ठ नेताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे RJD के शीर्ष नेतृत्व से मिलकर सीटों पर सहमति बनाएं। इन बातचीतों में हेमंत सोरेन की भूमिका अहम मानी जा रही है। हेमंत और तेजस्वी के बीच निजी संबंध मजबूत हैं, जो इस राजनीतिक खाई को पाटने में सहायक हो सकते हैं।
हेमंत-तेजस्वी की दोस्ती पर उठ रहे सवाल
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या हेमंत सोरेन और तेजस्वी यादव की ‘गठबंधन वाली दोस्ती’ सीट बंटवारे के विवाद में टिक पाएगी? दोनों नेताओं ने कई बार मंच साझा किया है और विपक्षी एकता की तस्वीर पेश की है, लेकिन जब बात जमीन पर आई राजनीतिक हकीकत की होती है, तब परिस्थितियां अलग नजर आती हैं। अगर सीटों पर सहमति नहीं बनती, तो यह दोस्ती केवल भाषणों तक सीमित रह सकती है।