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मचैल माता मंदिर: कठिन यात्रा और आस्था का अनोखा संगम, जहां आज बादल फटने से मच गई तबाही

मचैल माता मंदिर: कठिन यात्रा और आस्था का अनोखा संगम, जहां आज बादल फटने से मच गई तबाही

14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में मचैल यात्रा के दौरान बादल फटने से हादसा हुआ। मचैल यात्रा देवी दुर्गा को समर्पित प्रसिद्ध तीर्थयात्रा है, जिसमें हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह यात्रा मचैल माता मंदिर तक पैदल या हेलीकॉप्टर मार्ग से पूरी की जाती है।

मचैल माता मंदिर: 14 अगस्त 2025 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में मचैल यात्रा के दौरान बादल फटने से कई श्रद्धालु प्रभावित हुए। मचैल माता मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और यह यात्रा हर साल अगस्त में बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करती है। यात्रा जम्मू, उधमपुर और भद्रवाह से शुरू होकर पैदल या हेलीकॉप्टर मार्ग से मचैल पहुंचती है, और भक्त यहां माता के दर्शन व आशीर्वाद के लिए आते हैं।

मचैल माता मंदिर: हिमालय की गोद में स्थित

मचैल माता मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और यह जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ जिले के मचैल गांव में स्थित है। इस मंदिर का नाम गांव के नाम पर रखा गया है। मंदिर के आसपास ऊंचे पहाड़, हरी-भरी घाटियां और ग्लेशियर हैं। इसके अलावा चेनाब नदी की सहायक नदियां भी मंदिर के आसपास बहती हैं, जिससे इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता और बढ़ जाती है।

मंदिर का यह दृश्य और माहौल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं और दो या तीन दिन की कठिन यात्रा को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं।

मचैल माता मंदिर का इतिहास

मचैल माता मंदिर का इतिहास 1834 ईस्वी में जोरावर सिंह कालूरिया की लद्दाख विजय से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि लद्दाख के बोटी समुदाय की सेना के खिलाफ युद्ध से पहले उन्होंने मचैल माता का आशीर्वाद लिया था। युद्ध में सफलता मिलने के बाद जोरावर सिंह माता के परम भक्त बन गए।

1987 से भद्रवाह के ठाकुर कुलवीर सिंह ने इस मंदिर तक 'छड़ी यात्रा' की परंपरा शुरू की। इस यात्रा में भक्ति और आस्था के साथ श्रद्धालु कई गांवों से होते हुए मचैल माता मंदिर पहुंचते हैं। यात्रा के दौरान कई श्रद्धालुओं ने चमत्कारी अनुभवों की भी जानकारी साझा की है।

यात्रा मार्ग और सुविधाएं

मचैल यात्रा के लिए जम्मू, उधमपुर, रामनगर और भद्रवाह से ट्रैवल एजेंटों द्वारा बसों और टैक्सियों की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जम्मू से गुलाबगढ़ तक सड़क मार्ग लगभग 290 किलोमीटर लंबा है, जिसे तय करने में लगभग 10 घंटे लगते हैं। गुलाबगढ़ से मचैल माता मंदिर तक पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जिसकी दूरी लगभग 32 किलोमीटर है।

सर्दियों के महीनों में मंदिर बर्फबारी के कारण बंद रहता है, लेकिन अन्य समय में हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जो जम्मू या गुलाबगढ़ से मचैल माता मंदिर तक केवल 7-8 मिनट में यात्रा पूरी कर देती है। मंदिर के पास हेलिपैड होने के कारण यह सुविधा विशेष रूप से लाभकारी है।

मचैल माता मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

स्थानीय लोगों के अनुसार मचैल माता अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां माता के साक्षात दर्शन होने का अनुभव भी प्राप्त होता है। कहा जाता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ मंदिर आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही कारण है कि हर साल हजारों श्रद्धालु कठिन मार्ग तय करके भी मचैल माता के दर्शन करते हैं।

मंदिर का वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं के मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है। पहाड़ों की ऊंचाई, घाटियों की हरियाली और ठंडी हवा यात्रा को और भी विशेष बनाती है।

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