श्री हरतालिका तीज की व्रत कथा !

श्री हरतालिका तीज की व्रत कथा !
Last Updated: 12 मई 2023

हरतालिका तीज की व्रत कथा   Fast story of Hartalika Teej

मान्यता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म के बारे में याद दिलाने के लिए यह कथा सुनाई थी, जो कुछ इस प्रकार है। भगवान शिव माता पार्वती से कहते है। 

हे पार्वती! तुमने मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। तुमने अन्न-जल त्यागकर सूखे पत्ते खाए, सर्दी में तुमने लगातार पानी में रहकर तपस्या की। वैशाख की गर्मी में पंचाग्नि और सूर्य के ताप से खुद को तपाया। सावन की मूसलाधार बरसात में तुमने बिना अन्न-जल के, खुले आसमान तले दिन बिताए। तुम्हारे इस घोर कष्ट वाली तपस्या से तुम्हारे पिता गिरिराज काफी दुखी और बेहद नाराज थे। तुम्हारी इतनी घोर तपस्या और तुम्हारे पिता की नाराजगी को देखकर एक दिन नारद जी तुम्हारे घर आए। 

तुम्हारे पिता गिरिगाज ने जब उनके आने का कारण जानना चाहा तो नारद जी बोले, ‘हे गिरिगाज! मैं भगवान विष्णुजी के कहने पर यहां आया हूं। आपकी पुत्री की घोर तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु को उनसे विवाह करने की इच्छा है। इस बारे में मैं आपकी सहमति जानना चाहता हूं।’ नारद मुनी की बात सुनकर तुम्हारे पिता अत्यंत खुश होकर बोलें, ‘श्रीमान, अगर स्वयं विष्णु भगवान मेरी पुत्री से विवाह करना चाहते है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भगवान विष्णु तो साक्षात ब्रह्म का रूप हैं। यह तो हर पिता चाहता है कि उसकी पुत्री सुखी रहे और अपने पति के घर में लक्ष्मी का रूप बनें।

 

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तुम्हारे पिता द्वारा स्वीकृति पाकर नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें विवाह तय होने के बारे में समाचार दिए। इस बीच जब तुम्हें इस बात की जानकारी मिली तो तुम बहुत ज्यादा दुखी हो गई। तुम्हें दुखी देखकर तुम्हारी सहेली ने तुमसे दुख का कारण पूछा। तब तुमने कही, ‘मैं सच्चे मन से भगवान शिव को ही अपना पति मान चुकी हूं, लेकिन मेरे पिताजी ने विष्णु जी के साथ मेरा विवाह तय कर दिए है। मैं इतनी धर्मसंकट में हूं कि मेरे पास जान देने के अलावा कोई और दूसरा उपाय नहीं है।’ तुम्हारी सहेली ने तुम्हें हिम्मत देते हुए कही कि ‘संकट के समय धैर्य रखने की आवश्यकता होती है। तुम मेरे साथ घने जंगल में चलो जहां साधना भी की जाती है। वहां पर तुम्हें तुम्हारे पिता नहीं ढूंढ पाएंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि भगवान तुम्हारी मदद अवश्य करेंगे।’

तुमने अपनी सहेली की बात सुनकर यही किया। तुम्हारे घर से यूं चले जाने पर तुम्हारे पिता बहुत दुखी और चिंतित हुए। वो उस दौरान ये सोचने लगे कि मैंने अपनी पुत्री का विवाह विष्णु जी से तय करा दिया है। अगर भगवान विष्णु बारात लेकर आएं और पुत्री यहां नहीं मिली तो बहुत अपमान सहना पड़ेगा। तुम्हारे पिता ने तुम्हें चारों ओर खोजना शुरू कर दिए। उधर तुम नदी किनारे एक गुफा में पूरे मन से मेरी आराधना में डूब गई। फिर तुमने रेत से एक शिवलिंग बनाई। रात भर तुमने मेरी स्तुति में भजन जागरण किया। तुमने बिना अन्न-जल ग्रहण किए मेरा ध्यान किया, तुम्हारी इस कठोर तपस्या से मेरा आसन हिल गया और मैं तुम्हारे पास पहुंचा।

मैंने तुम्हें तुम्हारी इच्छा का कोई वर मांगने को कहा, तुमने तब मुझे अपने सामने पाकर कही कि “मैं आपको सच्चे मन से अपना पति मान चुकी हूं। अगर आप सच में मेरी इस तपस्या से खुश होकर मेरे सामने आए है, तो मुझे अपनी पत्नी के रूप में अपना लीजिए।’ मैं तुम्हारी बात सुनकर तथास्तु कहकर कैलाश की ओर चला गया। तुमने प्रात: होते ही पूजा की सारी सामग्री नदी में प्रावहित करके अपनी सखी के साथ व्रत का वरण किया।

उसी वक्त तुम्हारे पिता गिरिराज तुम्हें ढूंढते हुए वहां पहुंचे। तुम्हारी हालत देखकर तुम्हारे पिता दुखी होकर तुम्हारे इस कठिन तपस्या का कारण पूछे। तुमने अपने पिता को समझाते हुए कही, ‘पिताजी, मैंने जीवन का ज्यादतर समय कठिन तपस्या करके बिताया है। मेरी इस कठोर तपस्या का केवल एक ही उद्देश्य था, शिव जी को पति के रुप में प्राप्त करना। मैं आज अपनी तपस्या की परीक्षा में खरी उतरी हूं। आपने विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निश्चय किया था, इसलिए मैं आराध्य की तलाश में घर से दूर हो गई। अब मैं घर आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी, जब आप महादेव के साथ मेरा विवाह कराने के लिए तैयार होंगे।’

तुम्हारे पिता ने तुम्हारी इस इच्छा को मान लिए और तुम्हें अपने साथ वापस ले गएं। फिर कुछ समय बाद तुम्हारे पिता ने हमारा विधि-विधान के साथ विवाह करा दिए। भगवान शिव ने आगे कहे - हे’ पार्वती! तुमने भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मेरी पूजा करके जो व्रत की, उसी का फल है जो हमारा विवाह संभव हुआ। इस व्रत का ये महत्व है कि जो भी अविवाहित कन्या इस व्रत को करती है, उसे गुणी, विद्वान व धनवान वर पाने का सौभाग्य मिलता है। वहीं, विवाहित स्त्री जब इस व्रत को पूरी विधि से करती है, तो सौभाग्यवती होती है और पुत्र व धन सुख प्राप्त करती है।’

इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की – अगर सच्चे मन और मेहनत से किसी चीज की इच्छा की जाए तो इच्छा जरूर पूरी होती है।

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